लिवर सिरोसिस
(Liver Cirrhosis)
लिवर सिरोसिस
लिवर का एक
जटिल रोग है,
जिसमें लिवर की
क्रियाशील कोशिकाओं का क्षय
होता रहता है
तथा उनका स्थान
तंतुमय ऊतक ले
लेते हैं, जिसके
कारण इससे प्रवाहित
होने वाला रक्त
बाधित हो जाता
है तथा लिवर
की क्रियाशीलता शनैः
शनैः कम होती
चली जाती है।
लिवर
शरीर की सबसे
बड़ी ग्रंथि है
जिसका वजन सामान्यतः
1.5 कि० ग्रा०
होता है। यह
पेट में दायीं
ओर होती है
तथा इसका मुख्य
कार्य शरीर में
विभिन्न उपाचय क्रियाओं द्वारा
उत्पन्न विषाक्त पदार्थों को
निष्क्रिय करना है।
यह रक्त को
शरीर में जमने
से बचाने वाले
पदार्थ हिपेरिन का संष्लेशण
तो करता ही
है साथ ही
रक्त वाहिनियों के
टूट फूट जाने
पर रक्त का
थक्का जमाने में
प्रयुक्त होने वाले
रसायन का भी
संष्लेशण करता है,
यह कई प्रकार
के विटामिनों का
संष्लेशण भी करता
है, बाइल (पित्त
रस) का संष्लेशण
करता है जिससे
वसा का पाचन
संभव हो पाता
है।
लिवर
सिरोसिस
के
कारणः-
लिवर सिरोसिस के
कई कारण हो
सकते हैं जिनमें
से शराब का
अत्यधिक एवं दीर्घ
कालिक सेवन, हिपेटाइटिस
बी, हेपेटाइटिस सी,
हीपेटाइटिस डी, आटो
इम्यून हेपेटाइटिस, कुछ वंशानुगत
रोग, नान एल्कोहालिक
इस्टीएटो हेपेटाइटिस (Steatohepatitis), पित्त नलिका का
अवरूद्ध होना, विभिन्न प्रकार
की औषधियाँ एवं
संक्रमण।
लक्षणः- सामान्यतः आरम्भिक
अवस्था में कोई
लक्षण नहीं पाये
जाते परन्तु ज्यों-ज्यों लिवर की
क्रियाशीलता कम होती
जाती है रोगी
कई लक्षण महसूस
करता है जैसे-
जल्दी थक जाना,
भूख न लगना,
जी मिचलाना, कमजोरी,
वजन कम होना,
पेट में दर्द,
त्वचा पर रक्त
वाहिनियों के मकड़ी
जैसे चकत्ते (Spider Hamengiomas), जलोदर (Ascites),
तिल्ली बढ़ना, पीलिया आदि।
साथ ही इस
रोग से भविष्य
में कई जटिलतायें
उत्पन्न हो सकती
हैं जिनमें से
कई जानलेवा हो
सकती हैं।
निदानः- लिवर सिरोसिस
के निदान के
लिये रक्त परीक्षण,
क्लीनिकल लक्षण, अल्ट्रासाउण्ड, सी०
टी० स्कैन आदि
का सहयोग लिया
जा सकता है
परन्तु लिवर की
बायोप्सी को ही
ठोस प्रमाण माना
जाता है।
इलाजः- आधुनिक चिकित्सा
पद्धति में इस
रोग के फलस्वरूप
उत्पन्न जटिलताओं से बचाव
पर ही पूरी
चिकित्सा केन्दि्रत होती है
एवं गंभीर अवस्था
में लिवर का
प्रत्यारोपण ही एकमात्र
विकल्प है।
होम्योपैथिक चिकित्साः- सामान्यतः लिवर को
हुई क्षति की
पूर्ति पूर्ण रूप से
होना असंभव है
परन्तु होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति
में लिवर के
लिये कई प्रभावी
औषधियाँ उपलब्ध हैं। लिवर
शरीर का एकमात्र
ऐसा अंग है
जिसमें रिजनरेशन (Regeneration) की क्षमता
है। यदि लिवर
का कुछ अंश
स्वस्थ एवं जीवित
है तो अनुकूल
परिस्थितियों में पुनः
अपनी कार्य क्षमता
बढ़ा सकता है
तथा रोगी का
जीवन स्तर सुधर
सकता है। अन्य
चिकित्सा पद्धतियों में रोगी
को जो भी
औषधि दी जाती
है उसमें कुछ
न कुछ विषाक्तता
होती है जिसे
लिवर को ही
निष्क्रिय करना होता
है परन्तु स्वयं
लिवर के रोग-ग्रस्त होने पर
यह उस पर
एक अवांछित बोझ
है। होम्योपैथिक चिकित्सा
पद्धति में लिवर
सिरोसिस के लिये
दी जाने वाली
दवाओं में औषधि
की मात्रा अत्याधिक
सूक्ष्म होती है
अतः किसी प्रकार
की विषाक्तता का
प्रश्न ही नहीं
उठता अतः किसी
कुशल होम्योपैथिक चिकित्सक
से परामर्श कर
चिकित्सा ली जाये
तथा चिकित्सक के
निर्देशानुसार खान-पान
में परहेज किया
जाये तो इस
रोग में आशातीत
परिणाम मिल सकता
है।
इस रोग
में मुख्य लाभकारी
औषधियाँ
इस
प्रकार
हैं-
केल्केरिया-आर्स,
आर्से
निक
एल्बम,
कार्डुअस,
चायना,
चेलिडोनियम,
हाइड्रास्टिस,
फास्फोरस,
माईरेका,
सल्फर,
लाइकोपोडियम,
एपिस-मेल,
मैग-म्यूर
आदि।
उपरोक्त औषधियों का
सेवन किसी कुशल
होम्योपैथिक चिकित्सक के परामर्श
से ही करना
चाहिये।
सुझावः- शराब का
सेवन न करें,
हेपेटाइटिस का टीकाकरण
करायें, वसा का
सेवन कम करें,
साफ पेयजल की
उपलब्धता सुनिश्चित करें, अनावश्यक
व बिना चिकित्सकीय
परामर्श के दवा
न लें.