Saturday, July 21, 2018

एलर्जी


एलर्जी




जब शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र (Immune System) किसी वस्तु के विरूद्ध अतिसंवेदनशीलता (Hypersenstivity) दर्शाते हुए उग्र प्रतिक्रिया करता है तो उसे सामान्य भाषा में एलर्जी कहते हैं।नैनो इंडिया होम्योपैथी के चिकित्सको के अनुसार आजकल बढ़ते प्रदूषण (जैसे धुआँ, धूल परागकण, सुगन्धित पदार्थ इत्यादि), व्यस्त जीवनशैली अनियमित खान-पान के कारण एलर्जी ग्रस्त रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। यदि शरीर का रोग प्रतिरोधक तन्त्र सामान्य से कम सक्रिय होता है, तो व्यक्ति किसी भी संक्रमण की चपेट में सकता है, इसके विपरीत जब यह तन्त्र सामान्य से अधिक सक्रिय होता है, तो यह एलर्जी को जन्म देता है। जब रोगी एलर्जी कारक के सम्पर्क में आता है तो उसका रोग प्रतिरोधक तन्त्र सक्रिय होकर विशेष प्रकार के एन्टीबाडी (Antibodies) बनाता है, जो मास्ट कोशिका से जुड़ कर विशेष प्रकार के रसायन स्रावित करते हैं। जिसके कारण रोगी के शरीर पर विभिन्न प्रकार के लक्षण रोग के रूप में उभरते हैं। जैसे त्वचा पर लाल चकत्ते उभरना, सांस फूलना, आँख में लालिमा होना, छींके आना नाक से पानी बहना इत्यादि।
रोग बढ़ाने वाले कारक
नैनो होम्योपैथी के चिकित्सको के अनुसार एलर्जी का कारण अभी तक अज्ञात है, परन्तु नीचे दी गई स्थितियाँ रोग की तीव्रता और अधिक बढ़ा देती हैं। जैसेः-
1.   पर्यावरण प्रदूषण- इससे शरीर की श्लेष्मा झिल्ली की पारग्मयता बढ़ जाती है। जिसके कारण एलर्जी कारक आसानी से शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं।
2.   गले का संक्रमण।
3.   वायरल संक्रमण।
4.   अत्यधिक धूम्रपान।   
5.   एलर्जी कारक (परागकण धुआँ, धूल, रूसी, कवक, बीजाणु, सुगंधित पदार्थ) के सम्पर्क में आना।
6.   बचपन में माँ का दूध मिलना।


एलर्जी के मुख्य प्रकार
1.  दमा (Asthma)- इसके लक्षण सांस फूलना, खांसी बलगम, सीने मे जकड़न आदि होते हैं। कभी-कभी ये लक्षण इतनी तीव्रता हो जाते है कि रोगी को श्वासहीनता का द्रौरा पड़ सकता है, और यदि तुरन्त चिकित्सा मिले तो रोगी का जीवन खतरे में पड़ सकता है।
2.    एलर्जिक राइनाइटिस (Allergic Rhinitis)- इस रोग में आँख नाक में खुजली के साथ पानी बहना, अत्यधिक छींके, सिरदर्द भारीपन आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग का मुख्य कारण परागकण, धुआँ, धूल सुगंधित पदार्थ कवक बीजाणु आदि होते हैं।
3.   पित्ती (Urticaria)- इसमें अचानक शरीर पर लाल चकत्ते उभरते हैं जिनमें जलन खुजली होती है।यह सामान्यतः मौसम परिवर्तन के साथ बढ़ता है।
4.   एलर्जिक कनजक्टिवाइटिस (Allergic Conjunctivitis)- जब एलर्जी कारक आँख के सम्पर्क में आता है तो आँख में लालिमा जलन खुजली होती है और कभी-कभी सूजन दर्द भी हो सकता है।
निदान
रोग के लक्षणों के आधार पर कुछ निश्चित एलर्जी कारकों का चुनाव किया जाता है। फिर इनको हाथ पीठ की त्वचा के नीचे सूई द्वारा प्रवेश कराते हैं। तत्पश्चात जो लाल निशान उभरते हैं उनके आधार पर किस से एलर्जी है और किससे नहीं, को पहचाना जाता है इसे Allergy Test  के नाम से जाना जाता है
उपचार
1.   जिन पदार्थों से एलर्जी होती है उसकी वैक्सिन को त्वचा के नीचे सूई द्वारा प्रवेश कराया जाता है। और इस क्रिया को निश्चित अंतराल पर कई बार दोहराया जाता है। इस प्रकIर का वैक्सिनेशन अधिक कष्टप्रद तो होता ही है साथ ही रोगी को पूर्णतः लाभ भी नहीं होता है।

2.   प्रचलित चिकित्सा पद्धति में एलर्जी रोधक दवाएँ देकर रोगी की समस्या को कम किया जाता है तथा दमे के रोगी को इनहेलर्स नेबूलाइजर् दिया जाता है। जो श्वांस नली को फैला देते है जिससे सांस लेने में मदद मिलती है। यह स्थायी समाधान नहीं है अपितु क्षणिक लाभ अवश्य देता है।

सावधानियाँ
1.   धुएँ-धूल से बचें।
2.   शीतल पेय पदार्थ प्रतिशीतित भोजन के प्रयोग से बचें।
3.   शैशव काल में स्तन-पान को वरीयता दें।
4.   सिन्थेटिक वस्तुओं के प्रयोग से बचें।
5.   संक्रमण से बचें एवं एलर्जी कारक की पहचान कर उससे दूर रहें।
6.   अचानक तापमान परिवर्तन से बचें।

होम्योपैथिक उपचार
होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली में, प्रतिरक्षा तंत्र की एलर्जीकारक के विरुद्ध प्रतिक्रिया को पूर्ण रूप से पंगु कर, उसकी अतिक्रियाशीलता (Hyperactivity) को कम किया जाता है, जिससे क्रिया एवं प्रतिक्रिया में एक सामंजस्य बना रहता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी क्षीण नहीं होती है। इससे रोगी इलाज के उपरान्त पूर्णतया आरोग्य हो जाता है। इस दौरान रोगी होम्योपैथिक दवाओं के साथ किसी अन्य बीमारी के लिए आपातकालीन दवाओं का भी सेवन कर सकता है।
एलर्जी के होम्योपैथिक उपचार के दौरान रोगी द्वारा इसके लिए पूर्व में ली जा रही अन्य दवायें (इनहेलर्स, खाने की दवायें) शनैः शनैः कम करते हुए अंततः बन्द करा दी जाती हैं तथा रोगी की दवाओं पर आजीवन निर्भरता समाप्त हो जाती है, एवं रोगी पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है। इसमें मुख्य रूप से लक्षणानुसार होम्योपैथिक औषधियाँ जैसे- एकोनाइट, बेलाडोना, एलियम सीपा, साबाडिला, हीपर-सल्फ, आर्सेनिक-एल्ब, सेंग्युनेरिया, यूफ्रेशिया, काली कार्ब, ब्लाटा, ब्रायोनिया, पोथोस, केल्केरिया-कार्ब, रस टाक्स, अमोनियम कार्ब, साइलेशिया लाभकारी हैं जिन्हें किसी कुशल होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श कर लिया जा सकता है।

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